08 मार्च 2016

बेमौसम

जाने आज हुआ है अंबर इतना क्यों बोझल
घिर आए हैं गर्मी में भी बरखा के बादल
धीमे स्वर में खनक रही है बिजली की पायल
बूँदें हैं बेताब भिगाने धरती का आँचल

इनको भी महसूस हो गयी मेरे दिल की प्यास
इसी लिए ये बेमौसम आए हैं मिलने खास
पर जिसके इंतजार में उलझी है मेरी साँस
उसको कब होगा मेरे जज़बातों का एहसास ?

ये सब तो जाएंगे बनकर इक दिन के मेहमान
पलखों को तोहफें में देकर अश्कों का तूफान
इन्हें कहूंगा, जरा बरसना उसके भी आँगन
उसको मेरे हिस्से की भी दे आना मुस्कान

- अनामिक
(०४-०७/०३/२०१६)

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