14 मार्च 2014

खबर ही नही है

बहाता रहे मेघ दिन रात बूँदे
जमीं पर भला कुछ असर ही नही है

भटकती फिरे रोज बेचैन तितली
कली को मगर कुछ खबर ही नही है

जले है दिया जूँझ कर आँधियों से
सितमगर खुदा को कदर ही नही है

छुपाए रखे लाख जज़बात पलखें
उन्हे पढ सके वो नजर ही नही है

- अनामिक
(१५/०१/२०१४ - १३/०३/२०१४)

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