06 मार्च 2014

न जाने

चला हूँ ढूँढने मंजिल, जहा तेरे ठिकाने हैं
मगर पाने तुम्हे चलने अभी कितने जमाने हैं

मुझे सूझे न इक तरकीब मिलने, बात करने की
तुम्हारे पास मुझको टालने के सौ बहाने हैं

लबों पर जिक्र भी मेरा कभी छिडने न देती हो
जुबाँ मेरी तुम्हारी तारिफों के ही तराने हैं

जतन कुछ भी करू, इक तीर भी पहुँचे न दिल के पार
सितारें भी दू तोहफे में, कहोगी ये पुराने हैं

करो, न करो मेहर, दिल से तुम्हारी ना ढले मूरत
बसा मंदिर तुम्हारे कौन पर ईश्वर न जाने है

- अनामिक
(२५/०२/२०१४ - ०६/०३/२०१४)

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