चला हूँ ढूँढने मंजिल, जहा तेरे ठिकाने हैं
मगर पाने तुम्हे चलने अभी कितने जमाने हैं
मुझे सूझे न इक तरकीब मिलने, बात करने की
तुम्हारे पास मुझको टालने के सौ बहाने हैं
लबों पर जिक्र भी मेरा कभी छिडने न देती हो
जुबाँ मेरी तुम्हारी तारिफों के ही तराने हैं
जतन कुछ भी करू, इक तीर भी पहुँचे न दिल के पार
सितारें भी दू तोहफे में, कहोगी ये पुराने हैं
करो, न करो मेहर, दिल से तुम्हारी ना ढले मूरत
बसा मंदिर तुम्हारे कौन पर ईश्वर न जाने है
- अनामिक
(२५/०२/२०१४ - ०६/०३/२०१४)
मगर पाने तुम्हे चलने अभी कितने जमाने हैं
मुझे सूझे न इक तरकीब मिलने, बात करने की
तुम्हारे पास मुझको टालने के सौ बहाने हैं
लबों पर जिक्र भी मेरा कभी छिडने न देती हो
जुबाँ मेरी तुम्हारी तारिफों के ही तराने हैं
जतन कुछ भी करू, इक तीर भी पहुँचे न दिल के पार
सितारें भी दू तोहफे में, कहोगी ये पुराने हैं
करो, न करो मेहर, दिल से तुम्हारी ना ढले मूरत
बसा मंदिर तुम्हारे कौन पर ईश्वर न जाने है
- अनामिक
(२५/०२/२०१४ - ०६/०३/२०१४)
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