थम सी गई है जीवन कि नदिया
जब से किसी की आहट नही है
प्यासे फिरे हैं पंछी नजर के
दीदार का अब पनघट नही है
सुनसान दिल है, लडने, सताने
बातें, शरारत नटखट नही है
बहते न आँगन झोंके पवन के
अब छेडने को वो लट नही है
इक याद भटके कल के नगर में
पर रोज की वो चौखट नही है
- अनामिक
- अनामिक
(१५/०२/२०१३, २४/०४/२०१४, २५/०४/२०१४)
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