25 फ़रवरी 2014

रात

नशे में है समंदर, चढ रही है रात धीरे से
महरबाँ चाँद रेशम की करे बरसात धीरे से

गगन कब से पुकारे, कान मूँदे है पडी धरती
लगे है टूटने तारा बने जज़बात धीरे से

उछलकर भी, मचलकर भी, कभी समझा सकी ना जो
किनारे से लहर अब कह रही वो बात धीरे से

सितारों में हुई कुछ गुफ्तगू किस्मत बदलने की
अधूरी दासताँ करने लगी शुरुवात धीरे से

- अनामिक
(२३-२५/०२/२०१४)

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