21 फ़रवरी 2014

अर्जी

कब से नजर में कैद थे, अब पार कर सब मुश्किले
पंछी सलोने ख्वाब के भरने उडानें हैं चले

कश्मकश की बंदिशों को तोड कर जज़बात अब
दहलीज दिल की लांघ कर पहुँची जुबाँ तक बात अब

सब जान कर भी ना बनो अंजान, सुन भी लो जरा
दिल की मुरादें पाक हैं, पहचान तुम भी लो जरा

इक बार सुन लो, फिर करो तय जो तेरी मर्जी
पर बिन पढे ही ना करो खारिज मेरी अर्जी

अर्जियाँ ही अर्जियाँ हैं अब तेरे दरबार में
कुछ सुना दे फैसला, इनकार या इजहार में

- अनामिक
(१४,२०,२१/०२/२०१४)

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