12 जून 2013

समंदर

बीते कल सा थमा किनारा, यादों का है घना समंदर
जिसमें डूबते सूरज की भी परछाई दिखती है सुंदर
लहरें नटखट स्वांग रचाए, ऊपर चुलबुल, गुमसुम अंदर
सर्द हवा के झोंकों ने भी दबा रखा है तेज बवंडर

कुछ मोती मन की सीपी से गिरे रेत पर, मिले न वो फिर
निशान छूटें थे कदमों के, बहा ले गयी वक्त की लहर
साहिल पर कुछ नाम लिखे थे, अब न बचा है इक भी अक्षर
जिन्हे सजाया था सपनों से, ढह गए सभी मिट्टी के घर

इक पुकार निकले भीतर से, कर लौटे पृथ्वी का चक्कर
काट सके ना पर बेचारी इस तट से उस तट का अंतर
यूँ तो जुडे हुए दिखते है, आँखों का धोखा है ये पर
क्षितिज करे कोशिश कितनी भी, पा न सके धरती को अंबर

- अनामिक
(१६-२२-२३/०४/२०१३)

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