22 अक्तूबर 2016

ख्वाब ख्वाब

अभी आँख लगने वाली थी,
की तेरे ख्वाबों के पंछी
आ भी गए सताने को
      तुझे भी कहा नींद है वहा
      इसी लिए भेजा है इनको
      दिल का हाल जताने को

ये भी कोई समय है भला ?
नींद सुकूँ की छोड-छाडकर
ख्वाब ख्वाब हम खेल रहे हैं
      तू इक सपना भेज नजर से
      इधर पकड लू मैं पलखों में
      ख्वाब हर तरफ फैल रहे हैं

ख्वाब रसीला.. ख्वाब शबनमी..
नटखट.. चंचल.. ख्वाब रेशमी..
ख्वाब नासमझ.. ख्वाब बावरा..
      ख्वाब गुदगुदाता.. शरारती..
      ख्वाब मुस्कुराता.. जज़बाती..
      ख्वाब महकता.. ख्वाब सुनहरा..

इतने सारे ख्वाब निराले
भला कहा से लाती है तू ?
इन्हे भेजना अब बस भी कर
      कल के लिए बचाकर रख कुछ
      बाढ आ गयी है ख्वाबों की
      ख्वाब ख्वाब ही हैं अब घर भर

- अनामिक
(२२/१०/२०१६)

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