02 फ़रवरी 2016

ऐ चाँद

सुनो ऐ चाँद पूनम के, न इतना भी दिखो सुंदर
सखी की याद आती है, पडे जब भी नजर तुम पर ॥ धृ ॥

समय था वो, समा दीदार से उनके महकता था
शहद का जाम जब मुस्कान से उनकी छलकता था

तुम्हारी चाँदनी से भी हसीं थी सादगी उनकी
खिलाती थी दिलों में फूल बस मौजूदगी उनकी ॥ १ ॥

नजर के सामने तुम, वो, हजारों मील थे पर दूर
तुम्हारा भी न, उनका भी न छू सकता कभी था नूर

जतन कितने किए उन तक पहुँचने के, सभी बेकार
छुपा लेती थी खुदको रंजिशों के बादलों के पार ॥ २ ॥

अमावस की तरह इक दिन अचानक वो हुई गायब
मुकद्दर के सितारे वो चुराकर ले गयी संग सब

तुम्हारी शक्ल में ही देखता हूँ अब छवी उनकी
कभी तो ईद आए, वो दिखे, ये आस है बाकी

मिले गर वो कभी, ऐ चाँद, इक पैगाम पहुँचाना
"उनकी याद में इक बावरा जगता है रोजाना" ॥ ३ ॥

- अनामिक
(०२/०२/२०१५ - ०२/०२/२०१६)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें