ऐ लौटती बरखा जरा.. कुछ पल ठहर मेरी गली
महके, खिले बिन ही यहाँ मुरझा रही है इक कली ॥ धृ ॥
सावन गुजरता ही रहा, हर ओर तू जमकर गिरी
पर सिर्फ मेरी बाग में तूने नही दी हाज़िरी
कैसे खिले बूँदों बिना प्यासी कली वो मनचली
ऐ लौटती बरखा जरा.. ॥ १ ॥
अब लौटकर जाते हुए तो ये बुझा दे तिश्नगी
रिमझिम गिरा लड़ियाँ, कली को दे महकती जिंदगी
भर दे जमीं की गोद, पंखुड़ियाँ खिला दे मखमली
ऐ लौटती बरखा जरा.. ॥ २ ॥
- अनामिक
(०३-३०/१०/२०१४)
महके, खिले बिन ही यहाँ मुरझा रही है इक कली ॥ धृ ॥
सावन गुजरता ही रहा, हर ओर तू जमकर गिरी
पर सिर्फ मेरी बाग में तूने नही दी हाज़िरी
कैसे खिले बूँदों बिना प्यासी कली वो मनचली
ऐ लौटती बरखा जरा.. ॥ १ ॥
अब लौटकर जाते हुए तो ये बुझा दे तिश्नगी
रिमझिम गिरा लड़ियाँ, कली को दे महकती जिंदगी
भर दे जमीं की गोद, पंखुड़ियाँ खिला दे मखमली
ऐ लौटती बरखा जरा.. ॥ २ ॥
- अनामिक
(०३-३०/१०/२०१४)
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