जाने कैसी कशिश तुम्हारी आँखों की गहराई में है
नफरत भी बरसे इनसे, फिर भी इक प्यास जगाती है
अजब तुम्हारी खामोशी भी, जैसे गजल सुनाती है
रंजिश के स्वर में भी, लगता है, आवाज लगाती है
नफरत भी बरसे इनसे, फिर भी इक प्यास जगाती है
अजब तुम्हारी खामोशी भी, जैसे गजल सुनाती है
रंजिश के स्वर में भी, लगता है, आवाज लगाती है
कदम तुम्हारे बडे सितमगर, मुझे देख मुड जाते हैं
धूल मगर उन कदमों की राहों में फूल खिलाती है
धूल मगर उन कदमों की राहों में फूल खिलाती है
नजर चुरा लो, मुँह भी फेरो, मगर नजर के सामने रहो
सिर्फ तुम्हारी मौजूदगी भी दिल को सुकूँ दिलाती है
सिर्फ तुम्हारी मौजूदगी भी दिल को सुकूँ दिलाती है
- अनामिक
(३०/१२/२०१४, १२-१७/०२/२०१६)
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